Ssk17:Homepage/ഹിന്ദി കഥാരചന(എച്ച്.എസ്.എസ്)/രണ്ടാം സ്ഥാനം

Schoolwiki സംരംഭത്തിൽ നിന്ന്
विषय: प्यासी पत्थराई आँखें।

सूखी आँखें

        गर्मी की छुट्टि्याँ चल रही थी, पिछले साल कि तरह इस बार भी यूँ ही अपने इस छोटे से गाँव के इस छोटे घर में रहने के वजाय, इस बार लखन कही और जाना चाहता था, अपने चाची के यहाँ । जब लखन ने अपने बापू से इस विषय मे बात करी तो वो सीधा मुकर गए, उन्हें लखन का वहाँ जाना शायद मंजूर नहीं था। लेकिन एक बार मे ही हार मानने वालाे मे से नही था लखन, उसने अपनी बात बनवाने के लिए बार-बार कहता रहा - बापू मुझे चाची के यहा जाना हैं। आखिर बापू ने कहा साेचकर बताऊँगा। बस यह सुनते ही वह उछल कूदकर जाने लगा, जैसे उसे जाने की मंजूरा हा मिल गई हाे।

	लखन के जिद काे देखकर उसकी माई ने कहॉ - “आपका ही ताे बेटा है, इतना जिद्‌दी ही बनेगा, देखाे कैसे रठ लगाए बैठा, आप उसे वहाँ जाने दाे ना, लखन के बापू। ”लेकिन सरल" बापू ने आवाज उठाते ही लखन की आवाज सुनाई दी " मुझे मायी ने भी जाने की अनुमती दे दी“। उसके जिद्‌द के सामने बापू के रठ ने घुटने टेक दिए। उन्हाें ने जाने की तैयारी शुरू किया। अपने बस्ताे मे पहनने के लिए कपडे और टिफिन मे भर-भर कर खाना लेकर  वे अपने घर की चौखट से निकले। गाडी में चलते वक्त उसने बाहर की तरफ देखा, उसका गॉव छूटा जा रहा था, उसके नाक ने गीली कीचड की गंद काे पहचाना, उसने देखा गाँव पीछे छूटा जा रहा था, गाँव की खेत, मैदान, मंदिर सब उसके आाँखाें के सामने से छूटा जा रहा था। उसे लगा के यह कितना छाेटा सा गॉव है, जाे पलक  झपकते ही आखाे से आेझल हाे गया। अब उसे उस शहर की तसवीरे मन में दिखाई दे रही थी जाे उसने सिर्फ तसवीराे मे ही देखा है। उस लंबी यात्रा मे वह नाै साल लडका नींद के गहराई मे चले जाता  है। उसके मन मे खीचे हुए उन तसवीराे काे वह एक सपना बनाता है, जहॉ पर ऊचे इमारते, सुंदर और साफ-सुथरे सडके उसके सामने आता है।  

	अचानक सुनते गाडियाें की आवाज से लखन जाग उठता है, उसने देखा लंबी-लंबी इमारते जाे आकाश चूम रहे है, उसने उन इमारताे काे अपने दीवार के अंदर शायद पहले भी देखा था। उसने पहचान लिया शायद दिलवाले का शहर-दिल्ली पहूच गया है। उसके उत्साह का काेई सीमा नही था। अचानक गाडी राेक दिया, लखन ने बाहर देखा सारी गाडियाँ इसी तरह रुकी हुई थी, तब मैने बाहर देखा ताे छाेटे-छाेटे बच्चे उस शहर की सडकाे मे अकेले भूखे घूम रहे थे, उनमे से एक बच्चा शायद बहुत ही जयादा भूखा था क्याेकि वाे एक गली के आवारा कुत्ते की तरफ देख रहा था, जाे कचरे के ढेर से अपना भाेजन निकाल कर खा रहा था। लखन ने उस लडके की तरफ गाैर से देखा, छाेटा सा लडका, काला बदन, सिर पर छाेटे-छाेटे बाल, चेहरे पर मासूमियत, भूखे इंंसान का दर्द उसके आखाे मे दिखाई दे रही थी, उसके गीली आखाे मे। शायद वाे दुखी था क्याेकि वह उस गली के कुत्ते की तरह अपना भाेजन खा नही सकता था। लखन के आखे भर आए, उसे उस वक्त याद आया, के मुझे यह नही खाना कहकर मै कई बार खाना काे ठुकराकर चले जाता हूँ, शायद मुझे उस भूख का एहसास आज तक नही हुआ, जाे अपने आप काा इंसान हाेने का अफसाेस याद दिलादे।

	श्याम का सूरज भी ढलने लगा। सब चाची के घर पहुचे लखन का उतरा हुआ चहरा कुसू काे नही दिखाई दिया। लेकिन उसके मन मे अब यह बात दाैड रही थी, क्या उस लडके काे खाना मिला हाेगा। अब उसे लग रहा था के यह दुनिया इतनी भी अच्छी नही जितना के साेचता था। 

	सुबह हाेने की इंतजार ने आखिर दम ताेडा, सुबह की राेशनी  लखन के कमरे तक पहूंची। वह दिल्ली के आैर चेहरे काे देखने के लिए घर से बाहर निकला। कुछ कदम चलते ही उसने पढा " जानकी वृध्दाश्रम”। उसे इसका मतलब नही पता चला, उसने साेचा यह कैसी जगह है, गॉव मे ताे एेसी जगह नही देखा। लखन ने अपने कदम उस आश्रम की आैर बढाया। उसे वहाँ हर जगह बूढे लाेग दिखाई दिए। उसने देखा एक बूढी आैरत अपने कुछ बच्चाे काे  कहानियाँ सुना रही थी, एक के बाद एक कहानियाँ, परियाे की, जंगल की जाे बच्चाे के हाेटाे पर मुस्कान ला रही थी। कुछ दिन बाद लखन ने कहा, दादी कुछ अलग कहानियाँ सुनाआे-सच्ची वाली। दादी काे कुछ एेसी कहानियाँ याद नही आ रही थी, उन्हाेंने बच्चे के चाहत काे पर लगाने के लिए कहानी शुरू की।

	बहुत साल पहले आजमगढ गॉव मे रहने वाली एक लडकी थी, जाे अपने परिवारवालाे से बेहद प्यार करती थी, लेकिन उसे एक दिन उसके मॉ-बाप का अॉचल छाेडना पडा। उस दिन वह ताे अपने घर शादी करके विदा हाेगई, आैर किसी आैर के आशयाने मे उसने अपना सिर छिपा लिया। उसके बाद उसके बच्चे हुए, फिर एक हादसे ने उसके बच्चे के ऊपर से अपने बाप का हाथ  छीन लिया। वह बहुत राेई, लेकिन उसने आगे बढने का फैसला लिया। अपने बच्चाे ऊचे दर्जे की शिषा उसने दि दी, अपने हर बच्चे काे एक काबिल इंसान बनाया, लेकिन उस भाग-दाैड मे वाे शायद यह नही सिखा पायी के अपने मॉ से कैसे प्यार करते है। इस बिखरे हुए संसार ने उनके परिवार काे भी बिखेर दिया। उन बच्चाे ने अपने बूढी मॉ काे-जिसके गाेदी मे वाे सिर रखकर साेते थे, जिसकी लाैरियॉ उन्हें नींद की गहराइयाे तक ले चलती थी, उसे ही दर्द की खायी के गहराईयाे धकेल दिया। उन्हाेंने अपने मॉ उनसे अलग कर दिया, एक एेसी जगह जहॉ पर प्यार से "माँ” कहने वाला भी काेई नही - एक वृध्दाश्रम ने ढकेल दिया अपने माँ काे, लेकिन माँ की मन में वह अभी भी छाेटे बच्चे ही है जिनके लिए माँ का ह्रदय ममता से भर आता है।

	इतना कहते ही दादी ने अपना कहानी काे खतम किया। उसके बाद उस कमरे में एक सन्नाटा छाया हुआ था। उस दादी के चेहरे पर भी वह सन्नाटा कायम था। लेकिन शायद उनके अंदर दर्द का पहाड़ टूटा पडा था, जिसके नीचे दबकर उनका दम घुट रहा था, आज शायद उनका भरा हुआ जखम फिर से चाेट पहुचॉ रहा था। कुछ देर पहले तक जाे प्यासी आखे थी, जिनमे दर्द ताे झलक रहा था, लेकिन इनका कारण नही, मगर इस वक्त उस शांत भाव के ऊपर आखाे से सूखे - बूढे दर्द का अहसास आसू बनकर निकल रहा था। उस दादी ने अपने सूखे आसुआें काे अपने सफेद साडी के पल्लू से पाेंछ लिया। और अंत मे उस गहरे सन्नाटे काे ताेडते हुए दादी ने कहॉ -”बच्चाे अब घर चलाे, कहानियाँ खतम। लेकिन जब जाते वक्त लखन ने दादी से पूछा की क्या मै आपकाे दादी पुकारने के वजाय "दादी माँ ” बुला सकता हूँ। उन आवाज़ ने उन सूखे से आखाे फिर एक और बार गीला कर दिया। उन्हाेंने लखन काे गले लगा लिया, उस वक्त दादी माँ काे लगा के यह नन्हा सा बालक काेई और नही उनका ही पौता है, जाे यहाँ अपने दादी के गले लगने आया है।  

	लखन उस आश्रम से निकला, और सीधा घर की तरफ अपने कदम बढाने लगा। कुछ दूर गया ताे अजीब तरह के बदबूओं ने उसकाे तकलीफ पहुचायॉ। उसने देखा ताे वहॉ पर बडे-बडे कचराे के ढेर थे, और पूरा दीवार गीला था, उसे उस वक्त अपने गाँव की याद आयी, जहाँ पर हर जगह घीली मिट्टी की सुगंद आती है (वाे तेजी से चलना शुरू हुआ, और उसे तब पता चला की बापू क्याे मना कर रहे थे, वह मुझे इस अंधेरे दुनिया से दूर रखना चाहते थे, जहा हर जगह अंधेरा छाया है, हर नुक्कड मे दर्द दर्द का एहसास छुपा हुआ है, जाे दिल के रिश्ताे की कदर नही करते जिन्हे जीना नही आता। यहाँ कुछ मन के और रिश्ताे के गरीब है ताे कुछ धन के, लखन काे अपना गाँव याद आया। वह चाची के यहा पहुचते ही रठ लगाना शुरू किया - के मुझे गॉव जाना है" , दाे दिन मा ही उसे यह जिदंगी खराब लगने लगी।

	उन्हाेने जल्दी अगले गाडी मे गॉव की तरफ चल पडे। धीरे-धीरे ऊचे इमारताे मे छिपे उन सूखे पत्थराई आखे मिटते गएे, जिन्हे इस संसार ने इंसान से कुछ और बना दिया था। थाेडी ही देर बाद उसने अपने गॉव की सीमा देख ली, जहॉ पर फूल खिलते है प्रेम के, जहॉ दर्द नही हाेता किसी काे। उसने वह मंदिर, मैदान, खेत और दूर सुंदर पहाड देखना शुरू किया।

	उसने उस मिट्टी काे खुशबू का आनंद लिया जिसे दाे दिन पहले लखन दुधकारता था। छाेटे-छाेटे घर जिनमे खुशियाली बसती है - लखन देख सकता था। अब लखन उस दुनिया से दूर आ गया था जहॉ पर सूखे प त्थराई आखें थे। उसका आसमान साफ था। आज वाे खुश हाे रहा है कि वह एक इंसान है, जिस ज़माने ने नही ठुकराया, लेकिन फिर भी, लखन उन सूखे आखाे काे अभी भी देख सकता था, जाे कही पर भूख से तडप रहा है और जिसने गरीबी सहा है, और वाे दादी जाे अमीर हाेके भी मन से गरीब है, जिसकाे मॉ कहनने वाला धुधकार चला गया इन सबके बाद लखन काे समझ आया, यह, जिन्दगी हर आयने से देखाे ताे सुंदर नही दिखता।


VISHAL P
12, [[{{{സ്കൂൾ കോഡ്}}}|{{{സ്കൂൾ}}}]]
HSS വിഭാഗം കഥാരചന ഹിന്ദി-HSS
സംസ്ഥാന സ്കൂള്‍ കലോത്സവം-{{{വർഷം}}}


[[Category:{{{വർഷം}}}ലെ സൃഷ്ടികൾ]][[Category:{{{സ്കൂൾ കോഡ്}}} സ്കൂളിലെ കുട്ടികളുടെ സൃഷ്ടികൾ]][[Category:സംസ്ഥാന സ്കൂള്‍ കലോത്സവം {{{വർഷം}}}]][[Category:സംസ്ഥാന സ്കൂള്‍ കലോത്സവം-{{{വർഷം}}}ൽ HSS വിഭാഗം കഥാരചന ഹിന്ദി-HSS ഇനത്തിൽ തയ്യാറാക്കിയ രചനകൾ]] [[Category:സംസ്ഥാന സ്കൂള്‍ കലോത്സവം-{{{വർഷം}}}ൽ HSS വിഭാഗം തയ്യാറാക്കിയ രചനകൾ]][[Category:{{{സ്കൂൾ കോഡ്}}}]]