प्रगति का नाश करते मानव
अब रो रहा है चिल्ला चिल्ला कर I
हालांकि पेड़ों को काटा ,
और खेतों को नष्ट कर दिया,
फिर भी समझा नहीं प्रकृति का दर्द I
खत्म नहीं हुआ उसका गर्व I
मानवीयता बचा नहीं
इस भीषण हाथों में I
कूड़े-कचरे ढेर से ढेर वैसे
बना दिया कूड़ेदान इस हरी रंग का I
एक-एक करके आए
विनाशकारी व्याधियाँ
वंदन करता अब
हानी मारकर I
सामना कर दिया निप्पा और प्रलय को,
अब तो आया एक हत्यारा विषाणु,
किसी ने बुलाया उसे कोविड I
मार डाला उसने मानव को,
अचल रह गया इस भुवना !
मुखौटा तो पहनना है,
हाथ धोना है, साबुन से
बीस सेकंड तक धोना है,
हाथ मिलाना छोड़ना है,
सैर करना भूलना है I
ऐसी चली स्वच्छता का संदेश....
स्वच्छ रहो, तो स्वस्थ रहो
हे मानव,बिना स्वच्छता
बीमारियाँ तो आएगी !