इस अधर के बीच सिर्फ में
अकेलापन की इस काले कमरे में
मेरे दिल की तूलिका चलती है ।
दिल एक तित्तली की तरह उड़ती है ।
नींद देवता मुझसे नाराज़ है ।
एक महामारी की तीव्र तांडव में
धरती काँप रही है ।
डर की काली नज़रों में
दुनिया डूब जाती है ।
ऊपर आसमान और नीचे भूमि के बीच
करोड़ों ज़िंदगियाँ मौत को देखती है ।
माैत उसे देखकर हँसती है ।
इस कसौटी में लोग फँसते जा रहे है ।
महानगर नींद में डूब जाती है ।
सड़कें विजन और निर्जीव है ।
वो एक पादस्पर्श के लिए चाहती है ।
कोई आवाज़ नहीं सिर्फ डर ।
पूरी दुनिया अपने आप के लिए सोचती है ।
पर कुछ लोग दूसरों के बारे में सोचते है ।
वो अपने जीवन का बलिदान करते है ।
इलाज से इतिहास बनाते है ।
इलाज की उस तलवार लेकर
लड़ती है हमारी अक्षौहिणी सेना ।
एक चक्रव्यूह में रोकना चाहते है ।
एक ब्रह्मास्त्र से अंत करेगा उस महामारी का ।
इस काले कमरे में सिर्फ मैं
आती है याद माँ की प्यार ।
पता नहीं किस दिन उनसे मिलूँ ?
पर एक दिन ज़रूर मिलूँगा ।
उस गुलमोहर की छया पर सोना चाहती हूँ ।
कब आयेगा वो दिन ?
भरोसा है मुझे एक दिन आयेगा ,
शत्रु हमारे चक्रव्यूह में फँसेगा ।
पूरी दुनिया उड़ेगी एक दिन ।
एक दूसरे के हाथ पकड़कर हम बढ़ेंगे
विजय का सूर्योदय होगा ।
क्योंकि हम मानव है ।