"Ssk17:Homepage/ഹിന്ദി കവിതാ രചന (എച്ച്.എസ്)/രണ്ടാം സ്ഥാനം" എന്ന താളിന്റെ പതിപ്പുകൾ തമ്മിലുള്ള വ്യത്യാസം
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| തലക്കെട്ട്= | | തലക്കെട്ട്='''एक कलि खिलते समय...''' | ||
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<nowiki>खिलति है वो कलि एक दिन, | |||
जगाति है वो सबके मन | | |||
हर जगह पर प्यार जगाकर, | |||
बना देति है जीवन को सार्थक | | |||
आ जाती हा वो, | |||
खुशियों के बरसात से | | |||
चलि जाती है वो, | |||
दुःख के ऑंसूओं से | | |||
पुकारते है हम उसे, | |||
नन्हि कली के नाम से | | |||
बढते बढते अपने जीवन में, | |||
बन जाती है जीवन की काली | | |||
पहल देती तकलीफ कई बार, | |||
अपने प्रियों के जिन्दगीयों में | | |||
संतोष का खोझ-खोज कराकर, | |||
देति है खुशी-खुशी जिवन | | |||
पुकारते है हम उसे, | |||
अपनि बच्ची के नाम से | | |||
अपनि खुशयों का त्याग करके, | |||
बन जाता है हम उसके | | |||
जब वह आती है, | |||
तब देति है सूचना | | |||
अपनि मॉं के कोख में आकर, | |||
अपना स्थान बनाते है | | |||
जब जान लेते हैं यही स्थान, | |||
खुशी-खुशी मना लेते अपने गान | | |||
आनंदित हो जाती है वही काली, | |||
इसी गानों का बरसात सुनके | | |||
तीन-चार के महीनों में, | |||
दिखाती है वह अपनी आहट | | |||
इसी आहट का अनुभव करके, | |||
'मॉं' का अनुभव करती मॉं | | |||
बन जाती है प्यार का चिन्ह, | |||
दो प्रेमियों का जीवन में | | |||
जि लेते है वही प्रेमी, | |||
इसी कली के नाम से | | |||
ओढ लेती है वो अपनी पहचान, | |||
अपनी मॉं के कोख में | | |||
इस विश्वास को जानने के लिए, | |||
इसी विश्वास को पहचानने के लिए | | |||
चुपाति है वो अवनी ही पहचान, | |||
अपनी ही जन्मदाताओं से | | |||
इसी पहचान की प्रखर वासना में डालकर, | |||
करा देति है जन्मदाताओं को पागल | | |||
इसी कलि के खिलते समय, | |||
चुन लेते है अनेक इसको नाम | | |||
चुन-चुनकर, थक-थककर, | |||
देखते है विश्व इसी के नाम से | | |||
चुन लेते है अनेक सुन्दर नाम, | |||
पहचान इसीके सुन्दर बनाने | | |||
एेसे अनेक कठिनाईयॉं सहकर, | |||
तभी बन जाती है जीवन की कली | | |||
अपने इन भारी प्रयत्नों से, | |||
आ जाति है एक दिन बाहर | | |||
कहति है वो मन में एक बार, | |||
कि-"देख लाे मॉं मुझे" | | |||
जब देखती है उसे मॉं, | |||
तब करती है कली का अनुभव | | |||
पहचान पाती तब ही मॉं, | |||
अपने दस महीनों के दौलात को | | |||
जब पापा को देखती है, | |||
तब कहती है कि-"पापा, | |||
देख लो मुझे, आ गयी मैं, | |||
आपके बोझ को हल्का करने |" | |||
तभी पाते हैं पापा अनुभव, | |||
अपने इन-दिनों के परिश्रमों का | | |||
जान लेते हैं 'बाप' शब्द का सुख, | |||
कैद कर लेते हैं इसी शब्द का सुख | | |||
बढते-बढते बन जाति है वो, | |||
अपने मॉं-बाप की लाडली | | |||
कई जगहों में पहचान बनाकर, | |||
करति है उजागर अपने मॉं-बाप के नाम को | | |||
करते है प्रार्थना सदा उसीके प्रियजन, | |||
उसीके लिए, उसीके नाम से | | |||
जब किसी में पीछे जाति, | |||
तब रहते प्रार्थनावाले उसीके के आगे | | |||
इसी समय समझ पाति है वो, | |||
अपने आने की चेतावनी का महत्व | | |||
अपने आने की आहट का सुख | | |||
अपने जन्म स्न् का गर्व | | |||
रखती है सदा अपने मॉं-बाप का ख्याल, | |||
कर लेति है वो अपने मॉं-बाप का परवरिश | | |||
उनकि आवश्यकत को समझते-समझते, | |||
बढ जाति है इन्हीं लोगों के परवरिश से | | |||
जान लेती है वो अपने मॉं-बाप की पुकार, | |||
लौट आती है वो इन्हीं पुकारों को समझते | | |||
अपने माता-पिता के विरुद्ध न जाते | | |||
अपने माता-पिता को दुश्मन न समझके | | |||
जान पाते हैं वहीं जन्मदाता, | |||
जो करते हैं अपनी कली से प्यार | | |||
मुशकिल होता है वही समय, | |||
जो एक कली खिलते समय | | |||
घुस जाती है वह कली, | |||
अपने जीवन के प्रश्नों में | | |||
पर बच जाती है कई बार, | |||
इसी प्रार्थना उसके प्रियजनाें का | | |||
जब पहचान पाती है अपने प्रिय का, | |||
तब छोडना पडता अपने घर को मुश्किल | | |||
लेकिन अपने प्रियजनों के इच्छा समझके, | |||
चली जाती है वो अपने दिल के आश्रम से | | |||
बसाती है वो अपने प्रिय का घर, | |||
चलाती है वह अपने परिवार को | | |||
अभिमान पाती उसी समय | | |||
मॉं, पत्नि, बहू, भाभी आदी नामों का | | |||
याद करती है वह इसी समय, | |||
अपने मॉं-बाप से झूडी यादें | | |||
उनके दिये प्यार का महत्व, | |||
उनके दिये संस्कार का महत्व | | |||
यही मॉं-बाप करते हैं, भारत को गर्व, | |||
यही सदा चलाते हैं, भारत को आगे | | |||
अपने इन कलियों से, | |||
अपने इन सितारों से | | |||
पर जान न पाते, वे मॉं-बाप, | |||
जो करते है इसी कली का सर्वनाश | | |||
अपनी ही जिन्दिगी में और, | |||
अपने ही अस्तित्व में | | |||
इसी माता-पिता हैं, जो | |||
करते हैं भारत को महान | | |||
हम जैसी कलियाें की तरफ से, | |||
है अापको सदा सलाम | | |||
हे प्रियजनों, समझों इन कलियों का महत्व, | |||
अपनी जिन्दिगी और अपने देश में | | |||
समझो की वो पढेगी, वो उठेगी, | |||
इन्हीं के नाम से, इन्हीं के पहचान से | | |||
आप ही हैं वही मनुष्य, सदा | |||
जो करते हैं इनकी मदद | | |||
इन्हीं को पंख देकर, इन्हीं को खिलाकर, | |||
पहचान लाे कली के खिलने को...</nowiki> | |||
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| പേര്= ANAGHA G. NAIK | | പേര്= ANAGHA G. NAIK | ||
| ക്ലാസ്സ്= 10 | | ക്ലാസ്സ്= 10 | ||
| | | വർഷം=2017 | ||
| | | സ്കൂൾ= സെന്റ്. മേരീസ് എ.ഐ.ജി.എച്ച്.എസ്. ഫോർട്ടുകൊച്ചി (Ernakulam) | ||
| | | സ്കൂൾ കോഡ്= 26007 | ||
| ഐറ്റം=ഹിന്ദി കവിതാ രചന | | ഐറ്റം=ഹിന്ദി കവിതാ രചന | ||
| വിഭാഗം= | | വിഭാഗം= എച്ച്.എസ് | ||
| മത്സരം=സംസ്ഥാന | | മത്സരം=സംസ്ഥാന സ്കൂൾ കലോത്സവം | ||
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23:55, 26 സെപ്റ്റംബർ 2017-നു നിലവിലുള്ള രൂപം
एक कलि खिलते समय...
खिलति है वो कलि एक दिन, जगाति है वो सबके मन | हर जगह पर प्यार जगाकर, बना देति है जीवन को सार्थक | आ जाती हा वो, खुशियों के बरसात से | चलि जाती है वो, दुःख के ऑंसूओं से | पुकारते है हम उसे, नन्हि कली के नाम से | बढते बढते अपने जीवन में, बन जाती है जीवन की काली | पहल देती तकलीफ कई बार, अपने प्रियों के जिन्दगीयों में | संतोष का खोझ-खोज कराकर, देति है खुशी-खुशी जिवन | पुकारते है हम उसे, अपनि बच्ची के नाम से | अपनि खुशयों का त्याग करके, बन जाता है हम उसके | जब वह आती है, तब देति है सूचना | अपनि मॉं के कोख में आकर, अपना स्थान बनाते है | जब जान लेते हैं यही स्थान, खुशी-खुशी मना लेते अपने गान | आनंदित हो जाती है वही काली, इसी गानों का बरसात सुनके | तीन-चार के महीनों में, दिखाती है वह अपनी आहट | इसी आहट का अनुभव करके, 'मॉं' का अनुभव करती मॉं | बन जाती है प्यार का चिन्ह, दो प्रेमियों का जीवन में | जि लेते है वही प्रेमी, इसी कली के नाम से | ओढ लेती है वो अपनी पहचान, अपनी मॉं के कोख में | इस विश्वास को जानने के लिए, इसी विश्वास को पहचानने के लिए | चुपाति है वो अवनी ही पहचान, अपनी ही जन्मदाताओं से | इसी पहचान की प्रखर वासना में डालकर, करा देति है जन्मदाताओं को पागल | इसी कलि के खिलते समय, चुन लेते है अनेक इसको नाम | चुन-चुनकर, थक-थककर, देखते है विश्व इसी के नाम से | चुन लेते है अनेक सुन्दर नाम, पहचान इसीके सुन्दर बनाने | एेसे अनेक कठिनाईयॉं सहकर, तभी बन जाती है जीवन की कली | अपने इन भारी प्रयत्नों से, आ जाति है एक दिन बाहर | कहति है वो मन में एक बार, कि-"देख लाे मॉं मुझे" | जब देखती है उसे मॉं, तब करती है कली का अनुभव | पहचान पाती तब ही मॉं, अपने दस महीनों के दौलात को | जब पापा को देखती है, तब कहती है कि-"पापा, देख लो मुझे, आ गयी मैं, आपके बोझ को हल्का करने |" तभी पाते हैं पापा अनुभव, अपने इन-दिनों के परिश्रमों का | जान लेते हैं 'बाप' शब्द का सुख, कैद कर लेते हैं इसी शब्द का सुख | बढते-बढते बन जाति है वो, अपने मॉं-बाप की लाडली | कई जगहों में पहचान बनाकर, करति है उजागर अपने मॉं-बाप के नाम को | करते है प्रार्थना सदा उसीके प्रियजन, उसीके लिए, उसीके नाम से | जब किसी में पीछे जाति, तब रहते प्रार्थनावाले उसीके के आगे | इसी समय समझ पाति है वो, अपने आने की चेतावनी का महत्व | अपने आने की आहट का सुख | अपने जन्म स्न् का गर्व | रखती है सदा अपने मॉं-बाप का ख्याल, कर लेति है वो अपने मॉं-बाप का परवरिश | उनकि आवश्यकत को समझते-समझते, बढ जाति है इन्हीं लोगों के परवरिश से | जान लेती है वो अपने मॉं-बाप की पुकार, लौट आती है वो इन्हीं पुकारों को समझते | अपने माता-पिता के विरुद्ध न जाते | अपने माता-पिता को दुश्मन न समझके | जान पाते हैं वहीं जन्मदाता, जो करते हैं अपनी कली से प्यार | मुशकिल होता है वही समय, जो एक कली खिलते समय | घुस जाती है वह कली, अपने जीवन के प्रश्नों में | पर बच जाती है कई बार, इसी प्रार्थना उसके प्रियजनाें का | जब पहचान पाती है अपने प्रिय का, तब छोडना पडता अपने घर को मुश्किल | लेकिन अपने प्रियजनों के इच्छा समझके, चली जाती है वो अपने दिल के आश्रम से | बसाती है वो अपने प्रिय का घर, चलाती है वह अपने परिवार को | अभिमान पाती उसी समय | मॉं, पत्नि, बहू, भाभी आदी नामों का | याद करती है वह इसी समय, अपने मॉं-बाप से झूडी यादें | उनके दिये प्यार का महत्व, उनके दिये संस्कार का महत्व | यही मॉं-बाप करते हैं, भारत को गर्व, यही सदा चलाते हैं, भारत को आगे | अपने इन कलियों से, अपने इन सितारों से | पर जान न पाते, वे मॉं-बाप, जो करते है इसी कली का सर्वनाश | अपनी ही जिन्दिगी में और, अपने ही अस्तित्व में | इसी माता-पिता हैं, जो करते हैं भारत को महान | हम जैसी कलियाें की तरफ से, है अापको सदा सलाम | हे प्रियजनों, समझों इन कलियों का महत्व, अपनी जिन्दिगी और अपने देश में | समझो की वो पढेगी, वो उठेगी, इन्हीं के नाम से, इन्हीं के पहचान से | आप ही हैं वही मनुष्य, सदा जो करते हैं इनकी मदद | इन्हीं को पंख देकर, इन्हीं को खिलाकर, पहचान लाे कली के खिलने को...
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